मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह की दुश्मनी के किस्से पूर्वांचल में उस वक्त शुरू हुए, जब दोनों जुर्म की दुनिया के बेताज बादशाह बनने में जुटे थे सरकारी ठेकों को हासिल करने के लिए एक बार भनायक दास्तान अभी भी लोगों के जहन मे है जिसमे की धुआँ धाड़ गोलियाँ से बच निकले थे
अंसारी साहब आज भी उस सीन को देख कर लोगों के रूह कांप जाती है तारीख थी 15 जुलाई सन 2001 तूफानी बारिश के बाद भयंकर उमस-भरा दिन यूपी में मिनी असेंबली कहे जाने वाले पंचायत चुनाव की गहमागहमी थी। बड़े-बड़े बाहुबली अपने जिगर के छल्लों के सिर जीत का मुकुट देखना चाहते थे। हर कोई जानता था, यहां चुनाव बैलेट से ज्यादा बंदूक के जोर का था। गट्टे और कट्टे के बल पर चुनावी पट्टा लिखवाया जाता था। एक तरफ मंझले कद के बृजेश सिंह की अदावत कोई नहीं लेना चाहता था... दूसरी तरफ रौबदार मूंछ वाले और लगभग साढ़े छह फीट लंबे मुख्तार अंसारी का खौफ, जो जुर्म की दुनिया में उभरता सितारा था। बात गाजीपुर के मोहम्मदाबाद की है, जहां वो कांड हुआ, जिसका मुख्तार अंसारी को अंदाजा तक नहीं था की उनको ये दिन हमेशा के लिये याद रहने बाला है गाजीपुर जिले में मोहम्मदाबाद से करीब 7 किलोमीटर दूर उसरी चट्टी गांव में चुनाव प्रचार के लिए गाड़ियों का एक काफिला निकला। ये काफिला रेलवे फाटक पार कर गांव की तरफ बढ़ा ही था कि तभी काफिले की नाक के आगे एक ट्रक आकर खड़ा हो गया। जब तक कोई कुछ समझ पाता, और मुख्तार के शूटर बंदूक की नाल गाड़ियों से बाहर निकाल पाते, तब तक अंधाधुंध फायरिंग शुरू हो गई। ये पहला मौका था, जब मुख्तार अंसारी के ऊपर सामने से किसी ने हमला करने की जुर्रत की
ट्रक में लोग लदकर आए थे। कहा जाता है कि ये सभी बृजेश सिंह के छर्रे थे। गाड़ी के ऊपर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर हुई। गाड़ी में कुख्यात गैंगस्टर और मऊ सीट से विधायक मुख्तार अंसारी बैठा था और इस हमले का आरोप दूसरे गैंगस्टर बृजेश सिंह के ऊपर लगा। हमले में मुख्तार अंसारी बच गया लेकिन इलाके में उसके साथ बृजेश सिंह की दुश्मनी के चर्चे होने लगे। मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह की दुश्मनी दशकों पुरानी थी और दोनों का कई बार आमना-सामना भी हुआ। आइए जानते हैं कि इन दोनों के बीच की ये अदावत कैसे शुरू हुई इसके बारी मे वो ही जनता है जिसने ये मंजर अपनी आँखो से देखा हो
चलो जानते है की कैसे शुरू हुई बृजेश और मुख्तार की दुश्मनी 1980 के दशक में कुछ दबंगों से अपने पिता की हत्या का बदला लेने के बाद जब बृजेश सिंह पहली बार जेल गया, तो उसकी मुलाकात त्रिभुवन सिंह से हुई। त्रिभुवन सिंह उस वक्त लोहे के स्क्रैप और बालू रेत की अवैध ठेकेदारी करने वाले साहिब सिंह के गैंग के लिए काम करता था। त्रिभुवन से मिलने के बाद बृजेश सिंह मन बना चुका था कि अब वो क्राइम की दुनिया में ही अपने कदम बढ़ाएगा और इसलिए साहिब सिंह के गैंग से जुड़ गया। बृजेश सिंह बेशुमार ताकत और बेहिसाब पैसा कमाना चाहता था। पूर्वांचल में उस वक्त दो गैंग थे जिनकी बीच अक्सर गैंगवार होता था। पहला साहिब सिंह का. और दूसरा मकनू सिंह का। मुख्तार अंसारी इसी मकनू सिंह गैंग के लिए काम करता था जुर्म की दुनिया में अपना कद बड़ा करने में लगा बृजेश सिंह जबरन सरकारी ठेके हासिल करने लगा यही काम मुख्तार अंसारी भी मकनू सिंह के लिए करता था। बस यहीं से उसकी और मुख्तार अंसारी की दुश्मनी शुरू हो गई और और अंसारी साहब को अपना दबदबा कायम करना था इसलिए जुर्म की दुनिया मे अपना कदम रखा