बिहार मिथिला संस्कृति के उत्सव का पर्व सामा चकेवा सोमवार की देर रात पारंपरिक रीति रिवाज के साथ चुगला का मुंह जलाने के साथ सम्पन्न हो गया। इस त्योहार को लेकर आज शाम से ही घर-आंगनों में सामा-चकेवा के गीत गूंजने लगे थे।
इसके बाद देर शाम से महिलाओं ने भावपूर्ण पारंपरिक गीतों के साथ चकेवा,सतभाइयां,वृंदावन,चुगला,ढोलिया-बजनिया,बन तितिर,पंडित और अन्य मूर्तियों के खिलौने वाले डाला को लेकर महिलाएं घरों से बाहर निकली तथा पटुआ से बने चुगला को जलाया और उसका मुंह झुलसाया। इसके बाद उन्हें सामूहिक रूप से विसर्जित किया गया। बताया गया कि जिस तरह एक बेटी को ससुराल विदा करते समय उसके साथ नया जीवन शुरू करने के लिए आवश्यक वस्तुएं दी जाती है,उसी तरह से विसर्जन के समय सामा के साथ खाने-पीने की चीजें, कपड़े, बिछावन और आवश्यक वस्तुएं दी गई। इस दौरान महिलाओं ने विदाई और समदाउन भी गाया। विसर्जन के पूर्व भाई अपने घुटने से सामा चकेवा की मूर्ति तोड़ी उसके बाद बहन और भाई ने मिलकर केला के थम्ब को सजाकर नदी और पोखर में विसर्जित कर सामा चकेवा को विदाई दी।