The Kerla Story Chapter 2: कहानी केरल की निचली जनजाति महिलाओं की,स्तन ढकने पर टैक्स

भारत के बाकी हिस्सों में नंगेली के बारे में शायद लोग इतना न जानें, लेकिन केरल में इस आदिवासी महिला को बहुत सम्मान दिया जाता है. वो भी उसकी मौत के दशकों बाद. यह मौत इतनी असाधारण थी कि इसी के कारण नंगेली इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा बनी


बात है करीब 150 साल से भी ज्यादा पुरानी. उस समय केरल के बड़े भाग में त्रावणकोर के राजा का शासन था. यह वो दौर था जब जातिवाद समाज पर बुरी तरह हावी था. निचली जातियां शोषित थीं और उच्च जाति वाले खुद को उनका मालिक समझते थे. छुआ छूत, सामाजिक बहिष्कार जैसी चीजें आम थीं. इसी क्रम में एक और गंदा नियम था, जिसके अनुसार निचली जाति की महिलाओं को स्तन ढकने का अधिकार नहीं दिया गया. यानि उस क्षेत्र में उच्च वर्ग की महिलाएं ही स्तन ढक सकती थीं, निचली जाति की महिलाओं को सार्वजनिक स्थलों पर भी मर्दों की तरह स्तन ढके बिना ही काम करना होता था.


श्री शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय में जेंडर इकॉलॉजी और दलित स्टडीज़ की एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ. शीबा केएम बताती हैं कि यह नियम कई तरह के आदिवासी समूहों और जनजातियों के लिए बनाया गया था. अगर निचली जाति की महिला स्तन ढकना चाहे तो उसे क्षेत्रीय आर्थिक विकास के मामले देखने वाले अधिकारी के पास कर जमा करना ज़रूरी था. अगर कर नहीं दिया तो स्तन नहीं ढाका जा सकता. हम जिस दौर की बात कर रहे हैं, उसमें निचला वर्ग गरीब था इसलिए महिलाओं ने इज्जत को दांव पर रखकर स्तन ढके बिना ही जीना स्वीकार किया.



केरल के हिंदुओं में जाति के ढांचे में नायर जाति को शूद्र माना जाता था, जिनसे निचले स्तर पर एड़वा और फिर दलित समुदायों को रखा जाता था. डॉ. शीबा कहती हैं कि इस नियम के पीछे तर्क था कि महिलाएं खुद से ज्यादा सम्मानित, उच्च पद पर आसीन लोगों के सामने स्तन ढकने की अधिकारी नहीं हैं. कई उच्च वर्ग की जातियों में तो महिलाएं मंदिरों में जाकर भगवान की मूर्ति के सामने जाने पर स्तन से पर्दा हटा देती थीं, लेकिन निचले वर्ग की महिलाओं के लिए तो उच्च जाति का मर्द भी उच्चासीन था इसलिए उन्हें स्तन पर पर्दा डालने का अधिकार नहीं मिला.


एड़वा जाति की की नंगेली को इस नियम से आपत्ति थी. हालांकि उसकी मां, दादी, बहनें और परिवार की सभी महिलाएं इस नियम का मजबूरी में पालन करती आ रहीं थी पर नंगेली के लिए यह शर्मनाक था. इसलिए नंगेली ने स्तन पर पर्दा डालना शुरू कर दिया. जब इस बात की जानकारी कर अधिकारी को मिली तो उसने नंगेली के परिवार पर कर लगाना शुरू कर दिया. बहुत से लोगों ने नंगेली को समझाया कि उनका परिवार सम्पन्न नहीं है और वे कर नहीं चुका सकते लेकिन नंगेली ने पर्दा हटाने से इंकार कर दिया. एक बार जब कर अधिकारी नंगेली के घर कर मांगने पहुंचा तो उसने पाया कि वह पूरी तरह ढकी हुई है, स्तन पर भी पूरा पर्दा है.


अधिकारी ने उससे कर के साथ दंड शुल्क भी मांगा, लेकिन नंगेली ने देने से इंकार कर दिया. उसने कहा कि अपने शरीर की इज्जत करना, उसे ढकना या खुला रखना यह उसका निजी मसला है. जब अन्य वर्ग की महिलाओं को यह अधिकार है कि वे खुद को अपने हिसाब से सहेजें तो फिर हमें क्यों नहीं? अधिकारी ने नंगेली पर दंड शुल्क बढ़ा दिया. इसके साथ ही कर ना चुकानें पर सजा देने की भी बात कही.


नंगेली के परिवार ने कर अधिकारी से उसके जीवन की भीख मांगी, कर माफ़ करने के लिए खुद को गिरवी रखने के लिए तैयार हो गए पर अधिकारी नहीं माना. आखिर में नंगेली घर के भीतर गई, फ़रसा लेकर आई और कर अधिकारी के सामने अपने स्तन काटकर रख दिए. यह सबकुछ इतना अचानक हुआ कि अधिकारी घबरा गया और वहां से भाग गया. नंगेली के शरीर से रक्त बहता रहा और इतना ज्यादा बहा कि उसकी मौत हो गई.

 केरल का इतिहास बताता है कि जब नंगेली का दाह संस्कार किया गया तब उसका पति भी चिता में कूद गया.


क्या नंगेली के बलिदान से सबकुछ ठीक हो गया?


नंगेली की मौत के बाद उसकी याद में उस जगह का नाम मुलच्छीपुरम यानी 'स्तन का स्थान' रख दिया गया. हाल ही में इसे बदलकर मनोरमा जंक्शन कर दिया है. नंगेली के जाने के बाद अब उनके परिवार में केवल एक सदस्य, उनका पड़पोता मणियन वेलू बचा है. वे गौरवांवित महसूस करते हैं, कि वे नंगेली के परिवार के सदस्य हैं. मणियन कहते हैं कि नंगेली के इस बलिदान से तत्काल तो कुछ नहीं बदला. यह एक घटना थी और उसे घटना के तौर पर ही देखा गया पर जब अंग्रेजों ने क्षेत्र पर कब्जा किया तो स्तन कर को समाप्त कर दिया और फिर हर वर्ग की महिला को स्तन ढकने का अधिकार मिल गया.


ख़ैर इतिहास लिखने वाले और नियम बनाने वालों की समीति में शायद पुरूष सदस्य ही रहे होंगे इसलिए कभी भी नियमों और इतिहास को महिलाओं की नजर से नहीं देखा गया. आज जब दुनिया एक बार फिर अफगानिस्तान में तालिबानी हुकूमत को कायम होते देख रही है तो ये सवाल एक बार फिर उठा है कि धर्म चाहे जो भी हो, क्यों उसके नियम महिलाओं और पुरुषों के लिए एक समान नहीं? क्यों दो जातियों के बीच इस अंतर को बरकरार रखा गया है? क्यों आज भी मैला उठाने की परंपरा कहीं किसी कोने में जीवित है? क्यों सीवेज साफ करने की जिम्मेदारी अब भी उन्हीं पर हैं, जिनके पुरखे, उच्च जाति के घरों का मैला ढोते थे? 


अब जब किताबों में नए-नए रोल मॉडल्स को शामिल किया जा रहा है, तो फिर नंगेली के इतिहास से भी बच्चों को परिचित करवाना ज़रूरी है. नंगेली की कहानी से इतना तो साफ़ है कि हमारे इतिहास में बहुत सी गुमनाम महिलाएं हैं जिन्होंने अपने समय और सदी में ्पने-अपने तरीके से इतिहास बदला.

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !