सर्वप्रथम मां सीता ने की थी सूर्य की षष्ठी-पूजा जहां मुंगेर की गंगा नदी के बीच बना है सीता-चरण मंदिर

मिथिला में त्रेता युगों में राजा जनक के महल के विशाल प्रांगण में शिव-धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा ऋषि परशुराम के क्रोध पर विनम्रता से विजय प्राप्त कर दशरथ-पुत्र श्रीराम जब स्वयंवर के बाद अनुज लक्ष्मण और नव विवाहिता सीता के साथ जल-मार्ग से अयोध्या लौट रहे थे तो कार्तिक शुक्ल एकादशी को मुंगेर (प्रारंभिक नाम मुद्गलपुरी जो मुद्गल ऋषि के नाम पर पड़ा। बाद में मोदगिरी पर्वत-श्रृंखला के कारण, फिर मोंघीर ब्रिटिश शासकों ने किया। आज अंतिम परिवर्तन के बाद ' मुंगेर ' प्रमंडल के नाम से विश्व-विख्यात है।


पहले दिन संध्या के समय अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को प्रसाद भरे सूप अर्पित कर व्रती नारी ( कई पुरुष भी) भक्त एवं परिजनों के जल ढारने के बाद दूसरे दिन उदीयमान सूर्य की उपासना कर नई ऊर्जा से संबलित होने के विश्वास के साथ अगले दिन गोपाष्टमी को गऊ-सेवा करेंगे।

  गंगा नदी के मध्य में उभरे बालू के टापू पर नौका रुकी। सीता मां के साथ राम और लक्ष्मण ने भी पावन जल में डुबकी लगायी। फिर सूप में प्रसाद अर्पित कर दूसरे दिन चार दिवसीय अनुष्ठान को पूरा कर अयोध्या की ओर भ्राता द्वार के साथ नौका पर प्रस्थान कर गयीं। रामायण के अनुसार जब राम के वनवास- काल में असली सीता को सुरक्षा की दृष्टि से गंगा नदी से पांच किलोमीटर पूर्व में अग्नि देव के संरक्षण में देख दिया गया और मायावी सीता को साथ ले दोनों भाई असुरों से आक्रांत वन की ओर बढ़ गये। महापंडित और अजेय पराक्रमी रावण को मिले वरदान के अनुसार मानव अवतार में श्रीराम को उसे मुक्ति तो देनी थी। साथ ही विशाल भारत के अधिकांश क्षेत्रों में दैत्य तथा आततायियों से त्रस्त सज्जन और ईश्वरभक्त दुर्बल देशवासियों की रक्षा भी करनी थी। आतंकी दैत्यों और बाली जैसे कुपथगामी शासकों, जिसने छोटे भाई सुग्रीव को भागने के लिए विवश कर उसकी पत्नी को भी अपने अधीन कर लिया था, को भी यमलोक पहुंचाने का प्राण-दण्ड देना भी अभीष्ट था।







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