वैज्ञानिक तरीके से पपीते की खेती कर,अधिक उत्पादन करे

भारत एक कृषि प्रधान देश हैं, जहां अलग अलग मौसम अलग अलग फशलो का उत्पादन होता हैं,उत्तर भारत में मार्च और अप्रैल के महीने में पपीते की खेती बड़े पैमाने पर की जाती हैं,तो आइए जानते हैं पपीते की खेती और ज्यादा उत्पादन करने की विशेष तरीका देश के जाने माने वरिष्ठ फल वैज्ञानिक डॉ संजय कुमार सिंह से डॉक्टर सिंह बताते हैं, किसी भी फसल का बीज अच्छे नर्सरी से प्राप्त करे, क्योंकि नर्सरी एक ऐसा स्थान है,जहां पौधे तैयार किए जाते हैं और जरूरत के हिसाब से दूसरे स्थान पर रोपे जाते हैं. ऐसे में नर्सरी क्षेत्र का चयन करते समय कई बातों पर ध्यान देना पड़ता है. खास कर नर्सरी में जलभराव नहीं होने देना चाहिए. सभी पौधों को मर्सरी के अंदर बराबर धूप मिलना चाहिए, ताकि उनकी वृद्धि होती रहे. साथ ही नर्सरी क्षेत्र में पानी की आपूर्ति समय- समय पर करते रहना चाहिए. वहीं, पालतू और जंगली जानवरों को नर्सरी से दूर रखा जाना चाहिए



बीजों के चयन का रखें ध्यान:

डॉक्टर सिंह के मुताबिक, पपीते के उत्पादन के लिए नर्सरी में पौधों का उगाना बहुत महत्व रखता है. इसके लिए बीज की मात्रा एक हेक्टेयर के लिए 500 ग्राम पर्याप्त होती है. बीज पूर्ण पका हुआ होना चाहिए. साथ ही बीज अच्छी तरह सूखा हुआ हो. उसे शीशे की जार या बोतल में रखा चाहिए. खास बात ये भी है कि बीज 6 महीने से पुराना न हो. वहीं, बोने से पहले बीज को 3 ग्राम केप्टान से एक किलो बीज को उपचारित करना चाहिए.



बीज बोने के लिए क्यारी जमीन से ऊंची उठी होनी चाहिए. इसके अलावा बड़े गमले या लकड़ी के बक्सों का भी प्रयोग कर सकते हैं. इन्हें तैयार करने के लिए पत्ती की खाद, बालू और गोबर की खाद को बराबर मात्र में मिलाकर मिश्रण तैयार कर लेते हैं. जिस स्थान पर नर्सरी हो उस स्थान की अच्छी जुताई, गुड़ाई करके समस्त कंकड़-पत्थर और खरपतवार निकाल कर साफ़ कर देना चाहिए.


नर्सरी की मिट्टी कैसे तैयार करें: 


डॉक्टर सिंह बताते हैं कि पपीता की खेती के लिए यदि संभव हो तो प्लास्टिक टनल से ढकी जुताई वाली मिट्टी पर लगभग 4-5 सप्ताह तक मिट्टी का सोलराइजेशन करना बेहतर होता है. बुवाई के 15-20 दिन पहले मिट्टी को 4-5 लीटर पानी में 1.5-2% फॉर्मेलिन घोल कर प्रति वर्ग मीटर की मात्रा में मिलाकर प्लास्टिक शीट से ढक दें. कैप्टन और थीरम जैसे कवकनाशी @ 2 ग्राम /लीटर की दर से घोल बना कर मिट्टी के अंदर के रोगजनकों को भी मार देना चाहिए. फुराडॉन और हेप्टाक्लोर कुछ ऐसे कीटनाशक हैं, जिन्हें सूखी मिट्टी में 4-5 ग्राम/वर्ग मी की दर से मिलाया जाता है. वहीं, नर्सरी तैयार करने के लिए 15-20 सेंटीमीटर की गहराई तक मिलाया जाना चाहिए. ढकी हुई पॉलीथीन शीट के नीचे कम से कम 4 घंटे लगातार गर्म भाप की आपूर्ति करें और मिट्टी को बीज बिस्तर तैयार करते रहें.

दूरी का रखें ध्यान: डॉक्टर सिंह के मुताबिक, एक एकड़ के लिए 4050 वर्ग मीटर जमीन में उगाए गए पौधे काफी होते हैं. इसमें 2.5 x 10 x 0.5 मीटर आकार की क्यारी बनाकर उपरोक्त मिश्रण अच्छी तरह मिला दें और क्यारी को ऊपर से समतल कर दें. इसके बाद मिश्रण की तह लगाकर 1/2′ गहराई पर 3′ x 6′ के फासले पर पंक्ति बनाकर उपचारित बीज बो दें. फिर 1/2′ गोबर की खाद के मिश्रण से ढक कर लकड़ी से दबा दें, ताकि बीज ऊपर न रह जाए. यदि गमलों बक्सों या प्रोट्रे का उगाने के लिए प्रयोग करें तो इनमें भी इसी मिश्रण का प्रयोग करें. बोई गई क्यारियों को सूखी घास या पुआल से ढक दें और सुबह शाम फब्बारे द्वारा पानी दें. बोने के लगभग 15-20 दिन भीतर बीज अंकुरित हो जाते हैं. जब इन पौधों में 4-5 पत्तियां और ऊंचाई 25 सेमी. हो जाए तो दो महीने बाद मुख्य खेत में प्रतिरोपण करना चाहिए. प्रतिरोपण से पहले गमलों को धूप में रखना चाहिए.




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